क्या चार्जशीट को सार्वजनिक किया जा सकता है? जानें सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि चार्जशीट पब्लिक दस्तावेज नहीं है। जांच एजेंसी को यह निर्देश नहीं दिया जा सकता है कि इस दरस्तावेज को वेबसाइट पर अपलोड किया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि क्रिमिनल केस की जांच एजेंसी की तरफ से जो चार्जशीट दाखिल की जाती है उसे पब्लिक करने के लिए नहीं कहा जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर चार्जशीट को पब्लिक के लिए उपलब्ध कराने की गुहार लगाई गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चार्जशीट सार्वजनिक दस्तावेज नहीं है और इसे ऑनलाइन अपलोड नहीं किया जा सकता है। सिर्फ इसलिए कि एफआईआर अपलोड करने की व्यवस्था है, इस आधार पर चार्जशीट को अपलोड करने के लिए नहीं कहा जा सकता है। चार्जशीट मामले में आदेश जारी नहीं कर सकतेसुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस सीटी रविकुमार की बेंच ने कहा कि पुलिस व अन्य जांच एजेंसी जैसे सीबीआई या ईडी आदि को यह नहीं निर्देश दिया जा सकता है कि वह चार्जशीट को वेबसाइट पर अपलोड करे। उसे जनरल पब्लिक के पहुंच में बनाने के लिए सार्वजनिक करे। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में याचिका खारिज कर दी। बेंच ने कहा कि प्रशांत भूषण ने दलील दी है कि एफआईआर अपलोड करने के संबंध में जजमेंट है। यूथ बार असोसिसएन से संबंधित वाद में शीर्ष अदालत ने एफआईआर के मामले में फैसला दिया था। शीर्ष अदालत ने भूषण की दलील पर गौर करने के बाद कहा कि एफआईआर मामले में आदेश है लेकिन चार्जशीट मामले में ऐसा निर्देश जारी नहीं किया जा सकता है। पीड़ित, विक्टिम के अधिकार भी प्रभावितसुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यूथ बार असोसिएशन के केस में जो आदेश दिया गया था वह एफआईआर अपलोड के लिए था उसे चार्जशीट तक नहीं बढ़ाया जा सकता है। क्योंकि कई बार आरोपी निर्दोष होते हैं और कोर्ट से उन्हें कानूनी उपचार मिला हुआ है और ऐसे में उन्हें प्रताड़ित नहीं किया जा सकता है। जहां तक चार्जशीट का सवाल है तो उसके लिए आदेश को बढ़ाया नहीं जा सकता है। चार्जशीट को पब्लिक के लिए वेबसाइट पर अपलोड करने की जो दलील है वह सीआरपीसी की स्कीम के विपरीत है। इससे आरोपी के अधिकार भी प्रभावित हो सकते हैं। साथ ही विक्टिम के अधिकार भी प्रभावित हो सकते हैं। 9 जनवरी को फैसला रखा था सुरक्षितसुप्रीम कोर्ट ने 9 जनवरी को इस मामले में दाखिल याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया था। याचिकाकर्ता ने कहा था कि पुलिस की चार्जशीट को पब्लिक किया जाए। जब पुलिस चार्जशीट दाखिल कर देती है तो उसे वेबसाइट पर डाला जाना चाहिए। जस्टिस एमआर शाह की अगुवाई वाली बेंच के सामने एडवोकेट प्रशांत भूषण ने याची की ओर से दलील दी थी कि देश के हर नागरिक को यह जानने का अधिकार है कि अमुक क्रिमिनल केस में आरोपी कौन है और और किसके हाथ क्राइम हुआ है याचिकाकर्ता सौरव दास पत्रकार हैं और उनकी ओर से याचिका दायर कर कहा गया है कि चार्जशीट पब्लिक किया जाना चाहिए।