एक साथ हुईं चार सर्जरी
छत्तीसगढ़ और तेलंगाना के दो जोड़ों की रियल-टाइम में वीडियो स्ट्रीमिंग के साथ एक साथ चार सर्जरी हुई। आठ महीने का जटिल डॉक्यूमेंटेशन और कागजी कार्रवाई चली। डॉक्टरों ने कहा कि इससे गुर्दे के प्रत्यारोपण को प्रति वर्ष 5,000-6,000 तक बढ़ावा देने का मार्ग प्रशस्त हुआ है। वर्तमान में देश में हर साल लगभग 10,000 ट्रांसप्लांट किए जाते हैं। नेफ्रोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ. केएस नायक ने कहा, ‘यह बेहद कठिन ट्रांसप्लांट था। इसमें कई कानून शामिल हैं और कई यात्राएं करनी पड़ीं। चारों को सही समय और तारीख (9 दिसंबर) पर सर्जरी करानी पड़ी। गुर्दा प्रत्यारोपण विरिंची अस्पताल में किया गया।
डायलसिस वाले 50% मरीजों को नहीं मिल पाती किडनी
डेटा से पता चला कि ट्रांसप्लांट का इंतजार कर रहे 90% लोगों को स्वैप ट्रांसप्लांटेशन के बारे में पता नहीं है। डोनर पूल को शहरों और राज्यों से बाहर बढ़ाया जा सकता है। डॉक्टरों को उम्मीद है कि इस तरह के और ट्रांसप्लांट के लिए नए द्वार खुलेंगे। केआईएमएस अस्पताल में दूसरी डोनर- और सर्जरी लेने वाले मरीज की सर्जरी हुई। यहां के मुख्य नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ श्रीधर रेड्डी ने कहा, ‘क्रोनिक किडनी रोग (सीकेडी) के स्टेज-5 के मरीजों के पास केवल दो विकल्प होते हैं – डायलिसिस और ट्रांसप्लांट। अध्ययनों से पता चलता है कि डायलिसिस की आवश्यकता वाले आधे से भी कम रोगियों को मैच की किडनी नहीं मिल पाती है। परिवारों ने दोनों राज्यों से दस्तावेजों को मंजूरी दिलाने के लिए बहुत मेहनत की।’
पूरी तरह से ठीक हुए मरीज
डॉक्टर ने बताया कि उसी अस्पताल के भीतर किडनी की अदला-बदली मुंबई में भी हुई है। नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ. विश्वनाथ बिल्ला ने कहा कि यह एक अनूठा प्रत्यारोपण है। इस तरह का ट्रांसप्लांट होना अब पूरे देश की जरूरत बन गया है। अगर इसे आसान बनाया जाए तो कई मरीजों की जान बच सकती है। उन्होंने बताया कि जिन मरीजों का किडनी ट्रांसप्लांट किया गया है, दोनों पूरी तरह से ठीक हो गए हैं।
दोनों परिवार बने दोस्त
डोनर्स में से एक इंदु भटनागर ने कहापिछले डेढ़ साल के दौरान दोनों जोड़े दोस्त बन गए थे। वे अब यात्रा करते समय एक-दूसरे के घर पर रहते हैं। दानदाताओं में से एक इंदु भटनागर ने कहा कि वे हमारे लिए रक्षक के रूप में आए हैं इसलिए जब भी उन्हें (सीटी हनुमंथु और वरलक्ष्मी) रायपुर आना होगा, वह हमारे घर पर ही रुकेंगे। हम भी मिलने के लिए उनके घर गए थे। यहां तक कि उन्हें एक-दूसरे का खाना भी पसंद आने लगा है और उनके बच्चे दोस्त बन गए हैं। हम अपने परिवारों में इस आम समस्या के कारण मिले थे लेकिन हमें जीवन भर के लिए दोस्त मिले हैं। यह देखकर बहुत संतोष होता है कि दोनों परिवार स्वस्थ और खुश हैं।