‘ब्‍लास्‍ट में नहीं रहे दोनों हाथ’, फिर राष्‍ट्रपति से सम्‍मान, पीएम मोदी ने किया सेलेक्‍ट

नई दिल्‍ली: मालविका अय्यर की कहानी () साहस और दृढ़ संकल्प की है। 13 साल की उम्र में भीषण बम विस्फोट से बचने से लेकर राष्ट्रपति से नागरिक सम्मान पाने तक उन्‍होंने लंबा सफर तय किया है। वह इंटरनेशनल मोटिवेशनल स्‍पीकर हैं। वह लाखों लाख लोगों की रोल मॉडल हैं। मालविका समावेशी समाज की बड़ी पैरोकार हैं। तमिलनाडु के कुंभकोणम में उनका जन्‍म 18 फरवरी 1989 में हुआ था। लेकिन, वह राजस्‍थान के बीकानेर में पली-बढ़ीं। उनके पिता इंजीनियर थे। उनकी पोस्टिंग यहीं थी। बचपन से ही मालविका की दिलचस्‍पी टीचिंग, डांस और अपने हाथों से सुंदर चीजों को डिजाइन करने जैसी चीजों में थी। 2017 में मालविका ने सोशल वर्क में पीएचडी की। मालविका 13 साल की थीं जब घर में एक ग्रेनेड विस्फोट हुआ। इसमें उनके दोनों हाथ नहीं रहे। पैरों को भी नुकसान हुआ। दुर्घटना के बाद उनके हाथ तुरंत कलाइयों से कट गए। पैरों में भी गड़बड़ी आ गई। इनमें कई फ्रैक्चर हो गए थे। बायां पैर उल्टा हो गया था। डॉक्टर उसे काटने के कगार पर थे। दाहिना पैर भी ठीक नहीं था। इसे ऊपर उठाने के लिए बैसाखी पहननी पड़ती थी। लगभग 18 महीने तक वह बिस्तर पर पड़ी रहीं। लगभग आधे साल के लिए उनके पैरों के अंदर बाहरी फिक्सेटर ड्रिल किए गए थे। पैरों को एक जगह रखने का यही एकमात्र उपाय था। 10वीं की परीक्षा में कर द‍िया टॉप मालविका उस समय जिस दर्द गुजरी हैं उसे बयां नहीं किया जा सकता है। हालांकि, दो साल तक बिस्तर पर रहने के बावजूद उन्‍होंने 10वीं की परीक्षा में टॉप किया। उन्‍होंने प्राइवेट कैंडिडेट के रूप में परीक्षा दी थी। सिर्फ 3 महीने की तैयारी में उन्‍होंने 97% अंक हासिल किए थे। इसने सभी लोगों का ध्यान उन पर आकर्षित किया। इसके बाद भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम ने उन्‍हें राष्ट्रपति भवन में आमंत्रित किया। उनके लिए यह न भूलने वाला अनुभव था। मालविका को 2013 में चेन्नई में TEDxYouth में बोलने के लिए आमंत्रित किया गया था। इसने मोटिवेशनल स्‍पीकर के रूप में उनका करियर बढ़ाने में मदद की। इसके बाद उन्‍होंने इनक्‍लूजन के महत्व को हाईलाइट करते हुए अलग-अलग देशों में अपनी राय रखी। पूर्व राष्‍ट्रपति कोव‍िंंद ने नारी श‍क्‍त‍ि पुरस्‍कार से नवाजा मालविका को पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने नारी शक्ति पुरस्कार से नवाजा। उन्‍हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से अपने सोशल मीडिया अकाउंट संभालने के लिए चुना गया था। वह कहती हैं कि इनक्‍लूजन एक ऐसी चीज है जिसका जश्न मनाने की जरूरत है। शारीरिक बनावट बिल्कुल भी मायने नहीं रखती है। उनके लिए वास्तव में समावेशी समाज का हिस्सा होने का मतलब यह है कि हर एक के पास अद्वितीय कौशल है। इसकी सराहना की जानी चाहिए।एक खास बात जो मालविका को सबसे ज्यादा दुख पहुंचाती है, वह है जब लोग उन पर दया दिखाते हैं। कभी असंवेदनशील टिप्पणियां कुछ ऐसी होती थीं, जिन्हें बर्दाश्त नहीं किया जा सकता था। उनके साथ जो एक्सिडेंट हुआ वह उन्‍हें कभी नहीं रुलाता है। न उन्‍हें हाथ गंवाने का इतना दुख है। लेकिन, तब उन्‍हें बुरा लगता है जब लोग परिवार के लिए उन्‍हें बोझ कहते हैं। दुर्घटना के बाद उनके जीवन की गुणवत्ता में बढ़ोतरी हुई। जिस तरह से उनका काम उन्‍हें सभी जगहों पर ले जाता है वह उन्‍हें प्रेरणा देता है।