खून-पानी एकसाथ नहीं बह सकते… मोदी ने साफ कहा था, अब भारत ने पाकिस्तान की बढ़ा दी टेंशन

नई दिल्ली: सितंबर 2016 में उरी हमले के ठीक बाद पाकिस्तान को चेतावनी देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि खून और पानी एकसाथ नहीं बह सकते। हमले के 11 दिन बाद पीएम ने सिंधु जल संधि की समीक्षा की बात कही थी। उनकी एक लाइन से पाकिस्तान में हड़कंप मच गया था। ‘क्या पानी की बूंद के लिए तरसेगा पाकिस्तान’ जैसे सवालों को उठाते हुए पाकिस्तानी मीडिया में डिबेट छिड़ गई थी। इस समय वहां के हालात काफी खराब है। लोगों के पास खाने के लिए रोटी नहीं है, सरकार का खजाना भी खाली हो रहा है। ऐसे वक्त में भारत के एक नोटिस ने पाकिस्तानियों में फिर से टेंशन पैदा कर दी है। तब पीएम मोदी ने कहा था कि ऐसे समझौते एकपक्षीय नहीं हो सकते। इसमें भरोसा और सहयोग जरूरी है। महत्वपूर्ण बात यह है कि सिंधु जल बंटवारे के जरिए ही पाकिस्तान को सिंधु, झेलम, चिनाब का 80 फीसदी पानी मिलता है। अब भारत ने 1960 की सिंधु जल संधि (IWT) में संशोधन के लिए पाकिस्तान को नोटिस जारी किया है। भारत का कहना है कि समझौते को लागू करने में इस्लामाबाद आनाकानी कर रहा है और एकतरफा कदम उठा रहा है जो ठीक नहीं है। पाकिस्तान को आपत्ति क्या है?दरअसल, पाकिस्तान जम्मू-कश्मीर की किशनगंगा और रतले पनबिजली परियोजनाओं पर आपत्ति जता रहा है। उसने भारत के साथ चर्चा करने से ही मना कर दिया। IWT पर विश्व बैंक ने भी हस्ताक्षर किए हैं और वह भारत और पाकिस्तान से आम सहमति के आधार पर समाधान निकालने के लिए कहता आ रहा है। पिछले साल अक्टूबर में विश्व बैंक ने मामले की पड़ताल के लिए एक एक्सपर्ट नियुक्त किया था। पाकिस्तान का दावा है कि हेग में IWT प्रावधानों के तहत स्थापित कोर्ट में यह मामला चल रहा है। भारत चाहता है कि पिछले 62 साल से ज्यादा समय में मिले अनुभवों को शामिल करते हुए समझौते को अपडेट किया जाए।

पानी पर भारत vs पाकिस्तान

भारत ने संधि के उल्लंघन को दुरुस्त के लिए पाकिस्तान को 90 दिन की समयसीमा दी है। वैसे, इस्लामाबाद ने 2015 में एक न्यूट्रल एक्सपर्ट नियुक्त करने का अनुरोध किया था, जो प्रोजेक्ट के डिजाइन की जांच कर सके। एक साल बाद वह मध्यस्थता अदालत के लिए विश्व बैंक के सामने पहुंच गया। एक सूत्र ने हमारे सहयोगी अखबार TOI को बताया कि इस तरह की एकतरफा कार्रवाई समझौते के प्रावधानों का उल्लंघन है क्योंकि एक्सपर्ट को लेकर भारत पहले ही अनुरोध कर चुका था। सरकारी सूत्रों का कहना है कि भारत के लिए दो प्रक्रियाएं और दोनों के संभावित नतीजों से बिल्कुल विरोधाभासी परिस्थितियां पैदा हो गई हैं। विश्व बैंक भी जोर देकर कहता रहा है कि दो समानांतर प्रक्रियाएं नहीं चल सकती हैं और समस्या का समाधान भारत-पाकिस्तान को ही निकालना होगा। इधर, 2017 से 2022 तक सिंधु आयोग की पांच बैठकों में पाकिस्तान ने चर्चा करने से मना कर दिया। पाकिस्तान का डर समझ लीजिएमई 2018 में पीएम ने बांदीपोरा में 330MW किशनगंगा पावर स्टेशन का उद्घाटन किया था और किश्तवाड़ जिले में 1000 मेगावाट पाकल-दुल प्लांट की आधारशिला रखी थी। समीक्षा बैठक के बाद दो और पनबिजली परियोजनाओं पर काम तेज कर दिया गया। दोनों चिनाब की सहायक नदियों- किशनगंगा और मरुसुदर नदी पर स्थित हैं। भारत साफ संकेत दे चुका है कि भारत के खिलाफ आतंकवाद का इस्तेमाल करने वाले पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए हर विकल्प का इस्तेमाल किया जाएगा। इसमें सबसे महत्वपूर्ण है 1960 सिंधु जल के बेरोकटोक बहाव पर अंकुश लगाना। मोदी सरकार ने सिंधु जल प्रणाली से संबंधित कई इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट पर काम तेज कर दिया है, जिससे संधि के दायरे में रहते हुए भारत ज्यादा से ज्यादा पानी का इस्तेमाल कर सके। तब से कुल 4000 मेगावाट क्षमता के प्रोजेक्ट पर जम्मू-कश्मीर में काम हो रहा है। पिछले साल पीएम ने दो प्रोजेक्ट की नींव भी रखी थी। पाकिस्तान को चिंता कुछ साल पहले आई एक अमेरिकी रिपोर्ट से हो रही है जिसमें कहा गया था कि भारत इन प्रोजेक्टों के जरिए सिंधु से पाकिस्तान को पानी की सप्लाई को नियंत्रित कर सकता है। 2021 में भारतीय संसद की एक स्थायी समिति ने सिफारिश की थी कि IWT पर फिर से बातचीत की जाए जिससे नदी में जल की उपलब्धता पर पड़े असर और अन्य चुनौतियों से जुड़े मामले को सुलझाया जा सके जिसे समझौते में शामिल नहीं किया गया है।सिंधु नदी की व्यवस्था समझ लीजिएसिंधु और उसकी सहायक नदियों का पानी भारत और पाकिस्तान दोनों के लिए अहम है। सिंधु नदी प्रणाली में मुख्य नदी सिंधु और बाएं तट पर जुड़ने वाली पांच सहायक नदियां शामिल हैं, जो रावी, ब्यास, सतलुज, झेलम और चिनाब हैं। दाएं तट पर मिलने वाली सहायक नदी काबुल भारत में नहीं बहती है। रावी, ब्यास और सतलुज को एक साथ पूर्वी नदियां कहा जाता है, जबकि सिंधु समेत चिनाब और झेलम को पश्चिमी नदियां कहा जाता है। आजादी के समय भारत और पाक के बीच सीमा रेखा सिंधु नदी घाटी से होकर खींची गई थी। पाकिस्तान के हिस्से में निचला नदी तट आया और भारत के हिस्से में ऊपरी नदी तट आया। रावी और सतलुज नदी पर मौजूद दो महत्वपूर्ण सिंचाई परियोजनाएं भारत के हिस्से में आईं, जिन पर पंजाब (पाकिस्तान) में सिंचाई करने वाली नहरें पानी की आपूर्ति के लिए निर्भर थीं। इस प्रकार सिंचाई के पानी के इस्तेमाल को लेकर दोनों देशों के बीच विवाद पैदा हो गया। विश्व बैंक के सहयोग से 1960 में सिंधु जल समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे। किसको क्या फायदायह समझौता भारत को सिंधु की पूर्वी नदियों रावी, सतलुज और ब्यास के संपूर्ण पानी पर पूर्ण नियंत्रण प्रदान करता है। दूसरी तरफ पाकिस्तान को पश्चिमी नदियों सिंधु, झेलम और चिनाब के उस पानी के इस्तेमाल का अधिकार मिला। हालांकि भारत को घरेलू उपयोग, खेती और बिजली बनाने के लिए पश्चिमी नदियों के पानी का उपयोग करने की अनुमति दी गई है।