कानून से नाता है पुराना नाता
30 अक्टूबर, 1962 को जन्मी बीवी नागरत्ना के करियर के लिए कानून उनकी पसंद स्वाभाविक थी। उनके पिता न्यायमूर्ति ईएस वेंकटरमैया 19 जून 1989 से 17 दिसंबर 1989 के बीच भारत के 19वें मुख्य न्यायाधीश रहे। नागरत्ना ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के लॉ डिपार्टमेंट से एलएलबी की है। पढ़ाई पूरी करने के बाद बीवी नागरत्ना ने 28 अक्टूबर 1987 को एक वकील के रूप में बेंगलुरु में प्रैक्टिस शुरू की। 18 फरवरी 2008 को उन्हें कर्नाटक हाई कोर्ट का अतिरिक्त न्यायाधीश नियुक्त किया गया और 17 फरवरी, 2010 को एक स्थायी न्यायाधीश बनाया गया। सुप्रीम कोर्ट में आने से पहले हाई कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में उनके साढ़े 13 साल के कार्यकाल के दौरान बीवी नागरत्ना ने कई महत्वपूर्ण मामलों को निपटाया। वह न्यायमूर्ति एएस ओका की अध्यक्षता वाली एक पीठ का भी हिस्सा थीं, जिसने कोविड मामलों की सुनवाई की थी।
नाजायज संतान को लेकर महत्वपूर्ण टिप्पणी
कर्नाटक हाईकोर्ट में एक मामले की सुनवाई के दौरान नाजायज संतान को लेकर जस्टिस बी वी नागरत्ना ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की थी। उन्होंने कहा कि कानून को इस तथ्य को मान्यता देनी चाहिए कि नाजायज माता-पिता हो सकते हैं, लेकिन उनसे पैदा होने वाली संतान नहीं। जस्टिस बी वी नागरत्ना की अध्यक्षता वाली एक खंडपीठ ने कहा कि बिना माता-पिता के इस दुनिया में किसी बच्चे का जन्म नहीं हो सकता है। जन्म में बच्चे की कोई भूमिका नहीं होती है। कोर्ट ने कहा यह संसद का काम है कि वह बच्चों की वैध होने को लेकर कानून में एकरूपता लाए। इस प्रकार यह संसद को निर्धारित करना है कि वैध विवाह से बाहर पैदा हुए बच्चों को किस तरह से सुरक्षा प्रदान की जा सकती है।
नोटबंदी और फ्रीडम ऑफ स्पीच को लेकर क्या कहा
नफरती भाषण के संविधान के मूलभूत मूल्यों पर प्रहार करने का उल्लेख करते हुए सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस बीवी नागरत्ना ने कहा कि यदि कोई मंत्री अपनी आधिकारिक क्षमता में अपमानजनक बयान देता है तो इस तरह के बयानों के लिए सरकार को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि सार्वजनिक पदाधिकारियों और मशहूर हस्तियों सहित अन्य प्रभावशाली लोगों का कर्तव्य है कि वे अपने भाषण में अधिक जिम्मेदार और संयमित रहें। वहीं न्यायमूर्ति एस.ए. नजीर, न्यायमूर्ति बी.आर. गवई, न्यायमूर्ति ए.एस. बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमण्यन की एक संविधान पीठ ने एक अलग फैसले में कहा कि एक मंत्री के बयान के लिये सरकार को अप्रत्यक्ष रूप से जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने नोटबंदी को लेकर सरकार के फैसले को सही माना। हालांकि इस फैसले में भी जस्टिस बीवी नागरत्ना की राय दूसरे जजों से अलग थी। उन्होंने कहा कि संसद को नोटबंदी के मामले में कानून पर चर्चा करनी चाहिए थी, यह प्रक्रिया गजट अधिसूचना के जरिए नहीं होनी चाहिए थी। जज ने स्पष्ट तौर पर कहा कि देश के लिए इतने महत्वपूर्ण मामले में संसद को अलग नहीं रखा जा सकता है। जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि 500 और 1000 के नोटों को बंद करने का फैसला गलत और गैरकानूनी था।