बिहार: 31 साल पहले उग्रवादियों ने खेली थी खून की होली, उस रात 35 भूमिहारों का रेता था गला

बिप्लव कुमार, गया: 31 साल पहले उग्रवादियों ने 35 लोगों की गला रेतकर निर्मम हत्या कर दी थी। आज भी लोग उस घटना को याद कर सिहर जाते हैं। घटना 12 फरवरी 1992 की रात हुई थी। एक-एक कर 35 लोगों की गला रेतकर निर्मम तरीके से हत्या कर दी गई थी। इस घटना से बिहार में जंगलराज की छवि को दर्शाया था। बिहार के गया का अपराध इतिहास में ऐसी बड़ी घटना आजतक दोराई नहीं गई है। बारां नरसंहार के दोषियों को 31 साल बाद सजाइस तरह से अपराध के ग्राफ में गया का सबसे बड़ी घटना में से एक है। घटना के 31 साल बीत जाने के बाद आज गया के व्यवहार न्यायालय में सत्र न्यायधीश मनोज तिवारी की पीठ ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से मुख्य आरोपी रामचंद्र यादव उर्फ किरानी यादव को उम्र कैद की सजा के साथ 3 लाख 5 हजार रुपये के आर्थिक दंड की सजा सुनाई है। इस घटना से पूरे देश में बिहार की छवि खराब हुई थी। वारदात के वक्त बिहार में लालू प्रसाद यादव की सत्ता थी। इन्हीं घटनाओं के चलते उस दौर का जंगलराज भी कहा जाता है।गया के बारा गांव में एमसीसी उग्रवादियों ने 35 लोगों की गला रेत दी गई थी। तब बतौर मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने पीडि़त परिवार के लिए कई घोषणाएं की थी, जो आज भी अधूरी हैं। गया जिले के टिकारी प्रखंड के बारा गांव में नक्सली संगठन एमसीसी (MCC) के सैकड़ों हथियारबंद उग्रवादियों ने हमला कर भूमिहार जाति के 35 लोगों की गला रेतकर हत्‍या कर दी थी। कहने को तो घटना के करीब तीन दशक गुजर गए, परंतु जख्‍म अभी भरे नहीं हैं। पीड़ितों के जेहन में भय और दुख-दर्द आज भी ताजा हैं। सभी मृतकों के आश्रितों को नहीं मिली नौकरीघटना के बाद तत्कालीन सरकार ने पीड़ितों के आश्रितों को नौकरियां देकर मरहम लगाने का प्रयास किया था। सरकार की ओर से अनुग्रह राशि एक लाख रुपये और सरकारी नौकरी देने की घोषणा की गई थी, जिसमें से सभी पीड़ित परिजनों को अनुग्रह राशि राशि दी गई। 23 लोगों को ही नौकरी दी गई, शेष पीड़ित परिजन आज भी नौकरी की गुहार लगा रहे हैं। घटना के 3 दशक बीत जाने के बावजूद भी आज तक सरकार से निराशा ही हाथ लगी है। जनप्रतिनिधि और अधिकारीगण केवल उनके लिए वादों करते रहे हैं। आज भी बारां नरसंहार को याद कर सिहर जाते हैं लोगइस संबंध में पीड़ित परिजन सत्येंद्र सिंह उस रात की आंखों देखी हाल बयां करते हुए आज भी सहम जाते हैं। डबडबाती आंखों के साथ दर्द को बयां किया। कहा कि बारा गांव के नरसंहार में हमारे परिवार से 8 लोगों मारे गए, जिसमें हमारे पिता और चाचा शामिल है। मुझे ब्राह्मण समझ कर मुझे छोड़ दिया। घटना में मेरे अलावा घटना की रात 6 लोगों को गला रेता गया, जिसमें 2 लोगों का मगध मेडिकल में इलाज के बाद जान बच गई। पंडित समझकर कुछ लोगों बख्श गए थे उग्रवादीकुछ लोगों को ब्राह्मण और हरिजन समझकर उग्रवादी घटनास्थल पर ही छोड़ दिए थे, जिसमें नवलेश सिंह, जोगिंदर सिंह, वीरेंद्र सिंह, धनंजय सिंह, राम लखन सिंह, गोपाल सिंह गोपाल सिंह को पैर में गोली भी लगी थी वह किसी तरह से घटनास्थल से भागकर जान बचाए थे। उन्होंने बताया कि मेरे परिवार के आठ सदस्यों का मौत हुई थी, उनमें से रामेश्वर सिंह, बामेश्वर सिंह, चंद्रेश्वर सिंह, रामपरीखण सिंह, विद्याभूषण सिंह, हरिद्वार सिंह, मनोज सिंह, सुनील सिंह की हत्या की गई। वहीं गला रेतने के बावजूद गंभीर रूप घायलों को मगध मेडिकल कॉलेज अस्पताल में इलाज के दौरान दो लोगों की जान बच पाई। जान बचने वाले लोगों में वीरेंद्र सिंह और धनंजय सिंह थे। इस घटना में 32 लोगों की ऑन द स्पॉट डेथ हुई थी। 2 को मगध मेडिकल इलाज में इलाज के 22वें दिन मौत हो गई थी। वहीं गंभीर रूप से छह अन्य लोग घायल थे, जिसमें नवल सिंह, जोगिंदर सिंह, वीरेंद्र सिंह, धनंजय सिंह, राम लखन सिंह, गोपाल सिंह गोपाल सिंह को पैर में गोली लगी थी। वह घटनास्थल से भाग गए और बाकी को गला रेतकर मौत के घाट उतार दिया गया।