नई दिल्ली: तवायफ, भाड़े की सैनिक, राजनयिक, रानी… बेगम समरू के कई रूप हैं। पुरानी दिल्ली का आज इलेक्ट्रॉनिक्स का मकड़जाल दिखता है। सफेद पत्थर की यह इमारत कभी देश की सबसे ताकतवर महिलाओं में से एक का महल हुआ करता था। सरधना की रानी, चार फुट आठ इंच की बेगम समरू दरबार लगाती थीं, हुक्का खींचती थीं। एक वक्त उनकी सेना में 3,000 से ज्यादा सैनिक थे। कम से कम 100 तो गोरे थे जो बेगम समरू के एक इशारे पर किसी की भी जान ले लें। 1750 में जब जन्म हुआ तो बेगम समरू का नाम फरजाना हुआ करता था। कुछ इतिहासकार कहते हैं कि बेगम समरू की परवरिश दिल्ली-यूपी के कोठों में हुई। इन्हीं में से एक कोठे में 14 साल की फरजाना को देखकर ‘पटना के कसाई’ वाल्टर रेनहार्ट का दिल मचल गया। फरजाना उसकी हो गई, हर तरह से। रेनहार्ट का पेशा फरजाना का पेशा बन गया। जिगरवाली तो वह पहले से थी।’बुचर ऑफ पटना’फरहाना जिस वक्त एक कोठे में बड़ी हो रही थीं, भारत उथल-पुथल से गुजर रहा था। अंग्रेजों का बड़े भूभाग पर नियंत्रण हो चुका था। मुगल साम्राज्य अपने पतन की ओर था। छोटे-छोटे जागीरदार भी मुगलों के खिलाफ बगावत का झंडा बुलंद कर रहे थे। बगावत की लपटों को ठंडा करने के लिए मुगल शासकों ने यूरोप से मर्सनरी (भाड़े पर मारकाट करने वाले) बुलाए। इन्हीं से एक था ऑस्ट्रिया का वाल्टर रेनहार्ट। वह फ्रेंच आर्मी में था, फिर बंगाल भाग आया। यहां स्विस कॉर्प्स में शामिल हुआ लेकिन 15 दिन मं छोड़ दिया। कुछ दिन इधर-उधर काटे फिर मोटी कमाई के लालच में बंगाल के नवाब मीर कासिम से आ मिला। 1763 में रेनहार्ट ने अंग्रेजों में खौफ पैदा कर दिया। उसने पटना में डेढ़ सौ अंग्रेज मार दिए थे। तब से रेनहार्ट को ‘बुचर ऑफ पटना’ कहा जाने लगा। बक्सर की लड़ाई के बाद रेनहार्ट बादशाह शाह आलम II के वजीर मिर्जा नजफ खान की सेना में शामिल हो गया। उसे मेरठ की सरधना जागीर इनाम में दी गई। रेनहार्ट को भारत में नाम मिला ‘समरू’।देखते ही फिदा हो गया रेनहार्ट45 साल के रेनहार्ट ने दिल्ली के कोठे में 14 साल की फरजाना को देखा और दिल हार गया। फरजाना के व्यक्तित्व ने उसे मंत्रमुग्ध कर दिया। रेनहार्ट फरजाना को अपने साथ ले आया। तवायफों के बीच बचपन गुजारने वाली फरजाना अब हथियारों के बीच थी। अगले एक दशक में उसने रेनहार्ट से सब कुछ सीख लिया। रेनहार्ट के साथ से ही फरजाना को नया उपनाम मिला, समरू। रेनहार्ट शादीशुदा था। फरजाना उससे शादी करती तो कभी तख्त तक न पहुंच पाती। एक तवायफ के रूप में उसे किसी से पर्दा करने की जरूरत नहीं थी। मुगल दरबार में फरजाना ने कोठे से सीखा हर हुनर दिखलाया। रेनहार्ट की तरह वे भी उसपर फिदा थे। मुगलों ने फरजाना को ‘बेगम’ का खिताब दिया। अब उसे बादअब बेगम समरू पुकारा जाने लगा। बेगम समरू की सेना1778 में जब रेनहार्ट की मौत हुई तब फरजाना ने सरधाना की गद्दी संभाल ली। वह 3,000 से ज्यादा सिपाहियों, यूरोपियन अफसरों और गनर्स की सेनापति थी। मजबूत सेना और दिल्ली से करीब होने का मतलब था कि कमजोर हो रहे मुगल जब हमले का शिकार होते, बेगम समरू का रुख करते। बेगम साहिबा ने अपने सेनापति जॉर्ज थॉमस को कुछ टुकड़ियों को विदेशी आक्रांताओं पर हमला करने के लिए हमेशा तैयार करने का हुक्म दे रखा था। जब शाह आलम द्वितीय पर हमला हुआ तो बेगम समरू ने फौरन मदद भेजी। खुश होकर बादशाह ने बेगम समरू को ‘जेब-उन-निस्सा’ का खिताब दे दिया।क्यों छोड़ा इस्लाम?बेगम समरू का दिमाग बड़ा तेज था। यूं ही नहीं उन्होंने करीब छह दशक तक राज किया। उन्हें पता था कि एक दिन अंग्रेज ही राज करेंगे। इसलिए रेनहार्ट की मौत के बाद बेगम समरू ने इस्लाम छोड़ दिया। वह कैथोलिक ईसाई बन गईं। नाम अपनाया जोएना। सेना के एक इटैलियन अफसर से उन्हों ने सरधना में एक चर्च Basilica of Our Lady of Graces बनवाया। 1800s में जब सरधना जागीर अंग्रेजों के संरक्षण में आ गई तो फरजाना को कुछ सैनिक मेरठ पुलिस को देने पड़े। किस्मत की धनीइतिहासकारों ने बेगम समरू के विदेशी प्रेमियों का खूब जिक्र किया है। हमारे सहयोगी टाइम्स ऑफ इंडिया के एक लेख के अनुसार, बेगम समरू ने एक फ्रांसीसी से साथ जीने-मरने का वादा किया था। जब दोनों एक हमले से बचते फिर रहे थे, बेगम समरू ने खुद को चाकू मार लिया। उस फ्रांसीसी ने खून से सने कपड़े देखे तो खुद को गोली मार ली। वो मर गया, बेगम समरू बच गईं। नैशनल जियोग्रैफिक के लेख में प्रियंका बोरपुजारी लिखती हैं कि किसी आयरिश ने उनकी जान बचाई, जो बाद में प्रेमी भी बना। उसकी मौत के बाद बेगम समरू ने उसकी बीवी और बच्चों का खयाल रखा।बेगम समरू की संपत्तिजनवरी 1836 में बेगम समरू ने आखिरी सांस ली। उनके निधन पर रोम के चर्च में प्रार्थना सभा हुई। सरधना की बेगम समरू की अपार संपत्ति ब्रिटिश हुकूमत का प्रतिनिधित्व करने वाली ईस्ट इंडिया कंपनी को मिली। बेगम समरू के पास सोने की करीब 5.5 करोड़ मुहरें थीं। यानी आज के वक्त में करीब 39,32,47,40,00,000 रुपये। बेगम समरू या जोएना को सरधना के चर्च में ही दफनाया गया।