इस तरह खड़ा किया दो लाख करोड़ का कारोबार
बिहार के अररिया जिले के रहने वाले सुब्रत रॉय (Subrata Roy) को पढ़ने में कुछ खास मन नहीं लगता। शुरूआती पढ़ाई-लिखाई कोलकाता में हुई और फिर वो गोरखपुर पहुंच गए। साल 1978 में सुब्रत रॉय ने अपने एक दोस्त के साथ मिलकर स्कूटर पर बिस्कुट और नमकीन बेचने का काम शुरू किया। एक कमरे में दो कुर्सी और एक स्कूटर के साथ उन्होंने दो लाख करोड़ रुपये तक का सफर तय कर किया। दोस्त के साथ मिलकर उन्होंने चिट फंड कंपनी शुरू की। उन्होंने पैरा बैंकिंग की शुरूआत की। गरीब और मध्यम वर्ग को टारगेट किया। मात्र 100 रुपये कमाने वाले लोग भी उनके पास 20 रुपए्रये जमा कराते थे। देश की गलियों-गलियों तक उनकी ये स्कीम मशहूर हो गई। लाखों की संख्या में लोग सहारा के साथ जुड़ते चले गए। हालांकि साल 1980 में सरकार ने इस स्कीम पर रोक लगा दी गई थी।
सेबी के कागज मांगने पर भेज दिए थे 127 ट्रक
सहारा ग्रुप (Sahara Group) की कंपनियों में लोगों ने अपनी जिंदगी भर की कमाई लगाई हुई है। सहारा का स्कैम (Sahara scam) मुख्य रूप से सहारा ग्रुप की दो कंपनियों सहारा इंडिया रियल ऐस्टेट कॉर्पोरेशन लिमिटेड (SIRECL) और सहारा हाउसिंग इन्वेस्टमेंट कॉर्पोरेशन लिमिटेड (SHICL) से जुड़ा हुआ है। विवाद तब शुरू हुआ जब 30 सितंबर 2009 को सहारा ग्रुप की एक कंपनी सहारा प्राइम सिटी ने अपने आईपीओ के लिए सेबी में आवेदन (DRHP) दाखिल किया। सेबी ने जब इस डीआरएचपी को खंगाला तो इसमें कई गड़बड़ियां मिली। सेबी की तरह से बताया गया कि निवेशकों का डाटा ट्रेस नहीं हो पा रहा था। सेबी ने जब सहारा से निवेशकों की जानकारी मांगी तो सहारा 127 ट्रक लेकर सेबी के ऑफिस पहुंच गया, जिसमें निवेशकों की डिटेल्स थीं। सेबी ने जब जांच की तो पता चला कि इन फाइल्स में निवेशकों की पूरी जानकारी नहीं थी।