कौन लेता बालवीरों की खबर
गणतंत्र दिवस से कुछ दिन पहले तक तो ये बालवीर खबरों में रहते हैं। ये अपने इंटरव्यू देते हैं और फिर ये ओझल हो जाते हैं। किसी को यह पता नहीं होता कि ये कहां चल गए। पर दिल्ली के एक सरकरी स्कूल के अध्यापक रजनीकांत शुक्ल 1992 से इन बालवीरों के जीवन का अध्ययन करने लगे हैं। वे उसी साल दिल्ली आए थे। उन बालवीरों को खोज रहे हैं, जो उनके दिल्ली आने से पहले सम्मानित हुए थे। वे बताते हैं कि अब तक देश के विभिन्न राज्यों से 900 से भी अधिक बच्चों को राष्ट्रीय बाल वीरता पुरस्कार प्रदान किया जा चुका है। जिनमें से वे अधिकांश की कहानियों को लिख चुके हैं। उनसे पहले इस दिशा में छुटपुट प्रयास अवश्य किए गए लेकिन इतनी बड़ी संख्या में इन बहादुर बच्चों की कहानी किसी ने भी नहीं लिखीं हैं। उन्होंने ‘एक बहादुर का जन्म’के नाम से इन बच्चों पर 2009 में आकाशवाणी दिल्ली के लिए रेडियो धारावाहिक भी लिखा था। जो काफी लोकप्रिय हुआ।
राउज एवेन्यू स्कूल का वह बालवीर
फकीर चंद गुप्ता आईटीओ के करीब राउज एवेन्यू स्कूल में सातवीं कक्षा के छात्र थे। वर्ष था 1958 और वह फरवरी महीने की 28 तारीख थी। सुबह स्कूल आते समय फकीरचंद गुप्ता ने रेलवे लाइन के साथ हरकत करते कुछ लोगों देखा, वे पटरी काट रहे थे। अरे कुछ देर बाद तो इस पटरी पर ट्रेन आने वाली है बड़ी दुर्घटना हो सकती है। इस स्कूल से सटी है रेल लाइन। फकीरचंद गुप्ता को आशंका हुई तो उन्होंने दौड़कर स्कूल के आगे खड़े कुछ पुलिस कर्मियों को सूचित किया। पुलिस ने आकर उन बदमाशों को पकड़ लिया। उनकी सूझबूझ से एक बहुत बड़ी दुर्घटना टल गई थी। देश के प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने फकीरचंद गुप्ता को राष्ट्रीय बाल वीरता पुरस्कार से सम्मानित किया। रजनीकांत शुक्ल ने राउज एवेन्यू स्कूल में कुछ सालों तक पढ़ाया भी। वे कहते हैं कि आमतौर पर बालवीर पुरस्कार विजेता देश के निर्माण में लग जाते हैं। उनके आसपास का समाज उनका सम्मान भी करता है। पर वे कुल मिलाकर नेपथ्य में ही रहते हैं।