नई दिल्ली: साल 1998 जब दूसरी बार अटल बिहारी वाजपेयी ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। मार्च 1998 में संसद में अटल बिहारी वाजपेयी ने विश्वास प्रस्ताव पेश किया। इस प्रस्ताव पर पक्ष और विपक्ष के कई सदस्यों ने चर्चा में हिस्सा लिया और अपनी बात कही। इससे पूर्व अटल जी की सरकार 13 दिनों के लिए सिर्फ थी और बहुमत न होने की वजह से इस्तीफा देना पड़ा था। विश्वास प्रस्ताव पेश करते हुए अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा कि अध्यक्ष महोदय यह प्रस्ताव पेश करते हुए मेरे हृदय में मिली-जुली भावनाएं हैं। बरबस मेरा ध्यान 28 मई,1996 की ओर जाता है। उस दिन इसी सदन में, इसी स्थान से, मैंने उस समय की अपनी सरकार के लिए विश्वास मत की मांग की थी। तब से लेकर नदियों में बहुत सा पानी बह गया है। तब मैंने त्याग-पत्र दे दिया क्योंकि मैं अल्पमत में था और अम्पायर मुझे कहते कि आप मैदान से बाहर चले जाइए, उससे पहले ही मैंने मैदान छोड़ दिया। विश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान के भाषण की काफी चर्चा हुई वह पहली बार चुनकर यहां पहुंचे थे। उन्होंने अपने भाषण की शुरुआत की कुछ इस अंदाज में की- अंगुली कटवाने से शहीद नहीं हुआ करते।उसके लिए सिर कटवाने पड़ते हैं। राज को चलाने वाले अटल बिहारी वाजपेयी जी।राज को चलाना है तो चलाओ मगर सेक्युलरिज्म को अपनाओ।भाषण कैसा करना है यह अटल जी से पूछो। राज कैसा चलाना है यह शरद पवार जी से पूछो।होली कैसी खेलनी है यह लालू से पूछो।बाबरी मस्जिद को कैसे बचाना है यह मुलायम सिंह से पूछो।भाजपा से नाता कैसे तोड़ना है यह मायावती से पूछो।भाजपा से नाता कैसे जोड़ना है यह चंद्रबाबू से पूछो। भाजपा का सपोर्ट कब निकालना है यह जयललिता जी से पूछो।सीपीएम का सामना कैसे करना है यह ममता जी से पूछो।रामदास आठवले के इन पंक्तियों पर संसद में खूब ठहाके लगे और तालियां बजी। रामदास आठवले ने चर्चा में हिस्सा लेते हुए कहा कि अटल बिहारी वाजपेयी जी ने विश्वास का प्रस्ताव रखा है। लोकतंत्र में सरकार बनाने का अधिकार बाबासाहेब आम्बेडकर ने दिया है। हमारे दिल में कोई जलजलाहट नहीं है, कोई गड़बड़ाहट नहीं है। सवाल इतना ही है कि सरकार जो भी स्थापित हो रही है, इस सरकार ने कौन सी विचारधारा अपनाई है? भारत के संविधान ने जो सेक्युलरिज्म का तत्व स्वीकारा है, सर्वधर्म समभाव का तत्व स्वीकारा है ये तत्व भारतीय जनता पार्टी को क्या स्वीकार है? यदि बीजेपी के ये तत्व मंजूर है तो हमारा कहना इतना ही है कि हिन्दुत्व का नारा देने का प्रयत्न नहीं होना चाहिए। आठवले ने कहा कि हिन्दू धर्म से हमारा विरोध नहीं है। बाबा साहब भीमराव आम्बेडकर भी हिन्दू थे और दलित समाज भी हिन्दू था। राजकाज की बात मैं नहीं कर रहा हूं, यह बात मान्यता की है। सवाल इतना ही है कि भारत के संविधान में जो समानता की बात कही गई है क्या वह समानता आज देश में आई है। इसके लिए कौन जिम्मेदार है। इसके लिए केवल सत्ता में आए हुए लोग जिम्मेदार हैं या हम सभी लोग जिम्मेदार है। समाज में एकता लाने के लिए बीजेपी की सरकार क्या करने वाली है? रामदास आठवले ने कहा कि यह सरकार कितने दिन चलेगी, हमें मालूम नहीं हमने भी शुरू में अपनी सरकार बनाने का प्रयत्न किया था, लेकिन कुछ लोग उधर चले गये। अभी सरकार बन गई है। आप इधर आते हैं या हम उधर जाते हैं, यह बाद में देखेंगे। लोकतंत्र में इसका हमें अधिकार भी है। यहां मैं पॉलिटिकल बात नहीं कर रहा हूं। मैं कह रहा हूं कि अगर अटल जी की सरकार बहुमत में है तो चलेगी। उसे हम नहीं रोक सकते हैं। लेकिन जब मेजॉरिटी कम हो जाएगी तो वह कैसे लेगी और आप भी नहीं चलेंगे। तब हम चलेंगे। मेरा कहने का मतलब इतना ही है कि यह बारी-बारी से होता है। रामदास आठवले ने कहा कि अभी तो आपकी मेजॉरिटी है इसलिए अटल जी हम आपको अभी कुछ तकलीफ देने वाले नहीं हैं। अभी आपके पास मेजॉरिटी है। लेकिन इस देश में टू-पार्टी सिस्टम के संबंध में हम सभी लोकतंत्र को मानने वाले लोगों को सोचने की बहुत जरूरत है। अगर सरकार चलानी है तो सेक्युलरिज्म को अलग रखकर आप सरकार नहीं चला सकते हैं।