नीलकमल, पटना: क्या की ओर से हो रही विपक्षी एकता ( News) की कवायद कमजोर पड़ रही है? ये सवाल कर्नाटक में कांग्रेस की जीत के बाद हुए कई घटनाक्रम से उठे हैं। दरअसल, 20 मई को कर्नाटक में कांग्रेस की नई सरकार का शपथ ग्रहण समारोह था। जिसमें बीजेपी के खिलाफ नजर आ रहे विपक्षी दलों के नेताओं एक मंच पर नजर आए। हालांकि, इसमें (Arvind Kejriwal) को नहीं बुलाया गया। जिसके चलते वो शपथ समारोह में नजर नहीं आए। इस सियासी घटनाक्रम के बाद बिहार के सीएम नीतीश कुमार और डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव कर्नाटक से सीधे दिल्ली पहुंचे और केजरीवाल से मुलाकात की। वहीं चर्चा ये भी है कि नीतीश कुमार जल्द कोलकाता भी जा सकते हैं और पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी से मिलेंगे। ऐसे में क्या माना जाए सीएम नीतीश परिक्रमा पार्ट-2 में जुटे हैं?केजरीवाल से क्यों मिले नीतीशक्या कांग्रेस ने ये जिम्मेदारी लिए बिहार के सीएम नीतीश कुमार को सौंपी है कि वो अरविंद केजरीवाल समेत विपक्षी दलों के नेताओं को एकजुट करें? क्या नीतीश कुमार दिल्ली के बाद पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से भी मुलाकात करेंगे? ऐसा इसलिए क्योंकि ममता बनर्जी भी कर्नाटक की सिद्धारमैया सरकार के शपथ ग्रहण में नहीं पहुंची थीं। उनके अलावा ओडिशा के CM नवीन पटनायक (BJD), तेलंगाना के CM के चंद्रशेखर राव (BRS), आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री YS जगनमोहन रेड्डी (YSR कांग्रेस) और केरल के CM पी विजयन भी बेंगलुरु में नजर नहीं आए थे।कांग्रेस के कहने पर केजरीवाल से मिले नीतीश?राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि आज से चार महीने पहले तक दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल को पीएम पद का प्रबल दावेदार माना जा रहा था। आम आदमी पार्टी के नेता भी यह कहते नहीं थक रहे थे कि 2024 में सीधी लड़ाई नरेंद्र मोदी बनाम अरविंद केजरीवाल ही होने वाली है। लेकिन शराब मामले और शीश महल केस में फंसने के बाद केजरीवाल प्रधानमंत्री की रेस से काफी दूर हो गए हैं। यहां तक कि विपक्षी एकजुटता के नाम पर राजनीतिक दल भी अब केजरीवाल का नाम लेने से परहेज करने लगे हैं। कर्नाटक सरकार के शपथ ग्रहण समारोह में कांग्रेस ने इसी के चलते केजरीवाल को आमंत्रित नहीं किया था। तो क्या अब विपक्षी एकजुटता में डैमेज कंट्रोल के लिए कांग्रेस के कहने पर ही सीएम नीतीश ने दिल्ली में अरविंद केजरीवाल से मुलाकात की। क्या उन्हें विपक्षी एकता के मंच पर सवार होने के लिए मना लेंगे?क्षेत्रीय दलों के सामने कांग्रेस ने पेश की नई चुनौतीपिछले कुछ दशकों में जैसे-जैसे कांग्रेस कमजोर होती चली गई वैसे-वैसे देश के कई राज्यों में क्षेत्रीय पार्टियां मजबूत होती गईं। इसके पीछे का स्पष्ट कारण यह था कि हमेशा कांग्रेस के साथ रहे मुस्लिम मतदाता उनके कमजोर होने पर क्षेत्रीय पार्टियों के साथ चले गए। इसके अलावा राज्यों में कांग्रेस के कोर वोट बैंक भी पार्टी से अलग होकर अपना नया दल बनाने वाले नेता या फिर बीजेपी विरोधी राजनीतिक दलों के साथ हो लिए।हालांकि 2023 में कर्नाटक विधानसभा चुनाव के दौरान क्षेत्रीय पार्टी जनता दल सेकुलर यानी जेडीएस का जो हश्र हुआ है। उसे देखकर अन्य राज्यों के क्षेत्रीय दलों में तनाव जरूर उत्पन्न कर दिया है।कर्नाटक के नतीजों से क्यों बदले समीकरण?कर्नाटक चुनाव में मुस्लिम मतदाता एक बार फिर से कांग्रेस की तरफ मूव कर गए। वहीं जेडीएस के कोर वोटर बन चुके वोक्कालिगा जाति भी टूट कर कांग्रेस के साथ चली गई। क्षेत्रीय पार्टी की ओर से अब इसका सीधा मतलब यह निकाला जा रहा कि अगर उनके राज्य में भी कांग्रेस मजबूत हुई तो उनके अस्तित्व पर भी खतरा मंडराने लगेगा। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि 2024 लोकसभा चुनाव के मद्देनजर कांग्रेस के साथ कितनी क्षेत्रीय पार्टियां लामबंद हो पाती हैं।