ओमान में चीनी सैन्य बेस से अमेरिका चौकन्ना, समझिए भारत को है कितना खतरा

मस्कट: चीन मध्य पूर्व के देशों के साथ रक्षा और राजनयिक संबंधों को गहरा करने का प्रयास कर रहा है। इसी कड़ी में चीन, ओमान में अपना सैन्य अड्डा स्थापित करने की तैयारी में है। यह मामला इतना बड़ा है कि अमेरिकी रक्षा विभाग पेंटागन ने इसकी पूरी जानकारी राष्ट्रपति जो बाइडन को दी है। बैठक के दौरान पेंटागन ने यह बताया कि अमेरिकी सलाहकार ओमान में चीन के इस सैन्य अड्डे को लेकर क्या सोचते हैं। यह जानकारी बाइडन के साथ तब साझा की गई है, जब वह अमेरिका में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथा आमने-सामने की बैठक करने वाले हैं। चीन का पहले ही अफ्रीकी देश जिबूती में एक नौसैनिक अड्डा है, वहीं कंबोडिया का रीम नौसैनिक अड्डा बनकर तैयार है।बाइडन को दी गई चीन-ओमान सौदे की जानकारीब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार, बाइडन को बताया गया कि चीनी सैन्य अधिकारियों ने पिछले महीने ओमानी समकक्षों के साथ इस मामले पर चर्चा की थी, जिनके बारे में कहा गया था कि वे इस तरह के समझौते के लिए उत्तरदायी थे। नाम न जाहिर करने की शर्त पर अमेरिकी अधिकारियों ने बताया कि दोनों पक्ष आने वाले हफ्तों में और अधिक बातचीत के लिए सहमत हुए हैं। चीन के विदेश मंत्रालय ने टिप्पणी के अनुरोध का तुरंत जवाब नहीं दिया और व्हाइट हाउस ने इस मामले पर चुप्पी साध रखी है। अमेरिका में ओमान के दूतावास ने भी टिप्पणी के अनुरोध का जवाब नहीं दिया।ओमान में सैन्य अड्डा चीनी महत्वकांक्षा का प्रतीकओमान में मिलिट्री बेस चीन के लिए दूसरे विदेशी सैन्य अड्डों के लिए एक पूरक होगा, जिसे वह अफ्रीका के जिबूती में लॉजिस्टिक सेंटर के रूप में बताता रहता है। लेकिन, अमेरिका का वर्षों से दावा है कि चीन संयुक्त अरब अमीरात और थाईलैंड, इंडोनेशिया और पाकिस्तान सहित एशिया के कई अन्य देशों में विदेशी मिलिट्री लॉजिस्टिक फैसिलिटी का निर्माण करना चाहता है। अभी तक यह पता नहीं चल सका है कि चीन ओमान के किस जगह पर सैन्य अड्डा स्थापित करने की तैयारी में है। तटस्थ ओमान चीन की शरण मेंओमान को कभी-कभी मध्य पूर्व का स्विट्जरलैंड कहा जाता है क्योंकि यह तटस्थता की नीति का पालन करता है और नियमित रूप से अमेरिका और ईरान के बीच मध्यस्थ के रूप में कार्य करता है। इसने अमेरिका के साथ अपनी साझेदारी बनाए रखने और चीन के साथ संबंधों को बढ़ावा देने के बीच संतुलन बनाने की भी कोशिश की है, जो उसके कच्चे तेल के उत्पादन का बड़ा हिस्सा आयात करता है। चीन ने ओमान के डुकम विशेष आर्थिक क्षेत्र के पहले चरण में भी निवेश किया, जो मध्य पूर्व की सबसे बड़ी तेल-भंडारण सुविधा का स्थल होगा।ओमान में चीनी सैन्य अड्डे से अमेरिका को खतराओमान में चीन का एक मिलिट्री बेस अमेरिका के लिए एक चुनौती होगा। अमेरिकी सेंट्रल कमांड कुवैत, बहरीन, कतर, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात सहित पूरे क्षेत्र में तैनात सैनिकों की निगरानी करती है। अमेरिकी सुरक्षा परियोजना के अनुसार, ओमान फारस की खाड़ी का पहला देश था जिसने 1980 में एक पहुंच समझौते पर हस्ताक्षर करके अमेरिका के साथ सैन्य साझेदारी की थी।भारत के लिए क्यों अहम है ओमानओमान होर्मुज जलडमरूमध्य के पास भी स्थित है, जो तेल और लिक्विड नेचुरल गैस के लिए सबसे महत्वपूर्ण शिपिंग लेन में से एक है। जब भी ईरान के साथ तनाव बढ़ता है तो यह जलडमरूमध्य केंद्र बिंदु बन जाता है। भारत और ओमान के बीच संबंध काफी पुराने हैं। ओमान, पश्चिम एशिया में भारत का सबसे पुराना रणनीतिक साझेदार है। 5 हजार साल पहले गुजरात से व्यापारी समुद्री रास्ते से ओमान आते थे। गुलामी के दौरान भी ओमान के साथ भारत के संबंध कायम रहे। ओमान में 34 हजार भारतीय रहते हैं, जो हर साल बड़ी मात्रा में विदेशी मुद्रा भारत भेजते हैं।ओमान में चीन की मौजूदगी भारत के लिए कैसाओमान ने हिंद महासागर क्षेत्र में स्थिरता और सुरक्षा सुनिश्चित करने में भारत का बहुत सहयोग किया है। इसके अलावा, भारत और ओमान के बीच बढ़ते आर्थिक संबंधों ने दोनों देशों के रिश्‍तों को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। भारत, ओमान में सबसे बड़े निवेशकों में से एक बनकर उभरा है, जिसका कुल निवेश 7.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक है। द्विपक्षीय व्यापार में भी इजाफा हुआ है। साल 2022-2023 में दोनों देशों के बीच व्यापार 12 अरब डॉलर को पार कर जाएगा। ऐसे में अगर खुलता है तो उससे भारत को भी बड़ा नुकसान होगा।