मॉस्को: रूसी स्पेस एजेंसी का लूना-25 स्पेसक्राफ्ट क्रैश हो गया है। भारत के चंद्रयान-3 के साथ यह चांद के दक्षिणी ध्रुव पर पहले पहुंचने की रेस लगा रहा था। दोनों देशों में से जो भी पहले चांद के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचता वह इस मुश्किल इलाके में पहुंचने वाला पहला देश बनता। क्योंकि अब रूस इस रेस से बाहर हो गया है, तो इसका सबसे बड़ा फायदा भारत को मिलने वाला है। लेकिन फायदे से ज्यादा अब जिम्मेदारी है। क्योंकि दुनिया को भारत से उम्मीदें हैं। भारत ने चंद्रयान-2 भी लॉन्च किया था, लेकिन वह मिशन सफल नहीं हो सका। चंद्रयान-3 की कामयाबी भारत को एक प्रमुख स्पेस पावर के रूप में स्थापित करेगी।अमेरिका और रूस के बाद चीन चांद पर जाने वाला तीसरा देश है। चीन का अंतरिक्ष यान 2019 में पहली बार चांद पर उतरा था। चंद्रयान-3 की कामयाबी के साथ भारत चांद पर पहुंचने वाला चौथा देश बन जाएगा। चंद्रयान तीन की सबसे बड़ी कामयाबी इसका कम बजट है, जिसने दुनिया की अन्य स्पेस एजेंसियों को हैरान कर दिया है। रिपोर्ट्स के मुताबिक चंद्रयान-3 मिशन में 615 करोड़ का खर्च आया है। वहीं, भारत की कई फिल्मों को बनाने में इससे ज्यादा का खर्चा हो जाता है।लूना-25 हुआ क्रैशरूस की अंतरिक्ष एजेंसी ने रविवार को कहा कि उसका लूना-25 अंतरिक्ष यान चंद्रमा पर दुर्घटनाग्रस्त हो गया है। ‘रोसकॉसमॉस’ ने बताया कि उसका मानवरहित रोबोट लैंडर कक्षा में अनियंत्रित होने के बाद चंद्रमा से टकरा गया। एजेंसी ने एक बयान में कहा, ‘लैंडर एक अप्रत्याशित कक्षा में चला गया और चंद्रमा की सतह से टकराने के परिणामस्वरूप क्षतिग्रस्त हो गया।’ इसने कहा कि यान में चंद्रमा पर उतरने से पहले की कक्षा में भेजने के बाद समस्या आई और शनिवार को उससे संपर्क टूट गया।1976 के बाद पहला मिशन था लूना-25रूस ने 1976 के सोवियत काल के बाद पहली बार इस महीने की शुरुआत में अपना चंद्र मिशन भेजा था। यान के दुर्घटनाग्रस्त होने की खबर आने से पहले रोसकॉसमॉस ने शनिवार को जानकारी दी कि ‘असमान्य परिस्थिति’ उत्पन्न हो गई है और विशेषज्ञ समस्या का विश्लेषण कर रहे हैं। रोसकॉसमॉस ने टेलीग्राम पोस्ट में कहा, ‘अभियान के दौरान स्वचालित स्टेशन पर असमान्य परिस्थिति उत्पन्न हुई जिसकी वजह से विशिष्ट मानकों के अनुसार मार्ग में तय बदलाव नहीं किया जा सका।’सोमवार को होनी थी लैंडिंगइस अंतरिक्ष यान को सोमवार को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरना था। इसकी प्रतिस्पर्धा भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के चंद्रयान-3 से थी जिसे 23 अगस्त को चंद्रमा की सतह पर उतरना है। चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव को लेकर वैज्ञानिकों की विशेष रुचि है जिसके बारे में माना जाता है कि वहां बने गड्ढे हमेशा अंधेरे में रहते हैं और उनमें पानी होने की उम्मीद है। चट्टानों में जमी अवस्था में मौजूद पानी का इस्तेमाल भविष्य में अंतरिक्ष यात्रियों के लिए वायु और रॉकेट के ईंधन के रूप में किया जा सकता है।(एजेंसी इनपुट के साथ।)