नई दिल्ली: मध्य प्रदेश में जबलपुर के ने साफ कहा है कि अगर महिला अपनी मर्जी से अलग रह रही है तो उसे पति से पाने का कोई हक नहीं है। कोर्ट ने यह कहते हुए पति से अलग रह रही महिला की याचिका खारिज कर दी। कोर्ट ने कहा कि चूंकि महिला ने खुद ही पति से अलग रहने का फैसला किया था, इसलिए उसे गुजारा भत्ता मांगने का अधिकार ही नहीं है। पति ने कोर्ट को बताई यह बातअदालत में जब महिला के आवेदन पर सुनवाई हो रही थी, उसके पति ने बताया कि दोनों 15 दिसंबर, 2020 से ही अलग हैं। पति ने कहा कि तब पत्नी खुद ही अलग हो गई थी। तब पति ने की धारा 9 के तहत प्राप्त दाम्पत्य अधिकारों की बहाली की मांग को लेकर अदालत का दरवाजा खटखटाया था। पत्नी ने पति के खिलाफ किया था केसउधर, पत्नी ने भी उसके खिलाफ दहेज प्रताड़ना की शिकायत कर दी थी। इसके साथ ही महिला ने समझौते के तहत पति से प्राप्त 12 लाख रुपये के चेक के बाउंस होने का आरोप लगाकर केस भी कर दिया था। के प्रधान न्यायाधीश केएन सिंह के सामने मामला आया तो उन्होंने महिला के बयान का हवाला देकर ही उसकी अर्जी खारिज करी दी। जज ने महिला के बयान को ही बना लिया आधारजज केएन सिंह ने कहा कि महिला ने खुद कहा है कि वो पति के साथ नहीं रहना चाहती है तो फिर उसे गुजारा भत्ता पाने का हक कैसे है। जज ने यह कहते हुए महिला की मांग मानने से इनकार कर दिया। अहमदाबाद में तलाक का फैसला पलटाउधर, अहमदाबाद के सत्र न्यायालय ने यह कहते हुए एक हिंदू दंपती का तलाक खारिज कर दिया कि हिंदुओं में विवाह बहुत पवित्र संस्था का नाम है, दूसरे धर्मों की तरह कोई समझौता नहीं। सेशंस कोर्ट ने इसी हवाले से ट्रायल कोर्ट के फैसले को खारिज कर दिया। सेशंस कोर्ट ने यह हिदायत भी दी कि ट्रायल कोर्ट को तुरंत तलाक की अर्जी मंजूर करने के बजाय विवाह को बचाने का प्रयास करना चाहिए था। उसने पति-पत्नी से आग्रह किया कि वो आपसी मतभेद को दूर करने की कोशिश करें।