1350KM लंबे दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेसवे से कनेक्ट हैं 227 लोकसभा सीटें, 201 पर बीजेपी का कब्जा लेकिन

दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेसवे भारत का सबसे लंबा आठ लेन वाला एक्सप्रेसवे है। इसके पहले फेज में दिल्ली से दौसा के बीच 246 किलोमीटर स्ट्रेच को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आम लोगों के लिए खोल दिया है। अगले साल लोकसभा चुनाव से पहले ये पूरी तरह बनकर तैयार हो जाएगा। चुनावी मौसम में आप अगर अपनी गाड़ी से निकलते हैं तो 12 घंटे की ड्राइव में सात राज्यों, दो केंद्रशासित प्रदेशों को पार करेंगे। लगभग 1350 किलोमीटर की दूरी तय करेंगे। इस दौरान कम से कम 36 लोकसभा क्षेत्रों में आपकी गाड़ी फर्राटा भरेगी। सात राज्यों और दमन-दीव, दादर-नगर हवेली को मिला दें तो कुल 227 लोकसभा क्षेत्र इसके दायरे में हैं। ऐसा तो है नहीं कि यूपी में 80 सीटें हैं तो सबको फायदा होगा। गाजियाबाद, नोएडा वालों को तो सीधा ही फायदा है। हां गोरखपुर वाले को डायरेक्ट फायदा नहीं है। पर एक्सप्रेसवे की छाप तो बनेगी। इसे यूं समझिए। जब स्वर्णिम चतुर्भुज योजना अटल बिहारी वाजपेयी ने शुरू की तब जेहन में मुंबई-पुणे एक्सप्रेस वे का नाम आता था। फिर नोएडा-ग्रेटर नोएडा और यमुना एक्सप्रेस वे बनी। जब स्वर्णिम चतुर्भुज के तहत बनी सड़क से धनबाद पहुंचा तब लगा कि ये भी कोई चीज है। 100 की स्पीड में 40 वाली फील। अब तो लखनऊ-आगरा एक्सप्रेस वे से लगातार दिल्ली-बिहार की दूरी एक दिन में नाप लेते हैं। शानदार ड्राइविंग की चर्चा दिल्ली में भी होती है और 1200 किलोमीटर दूर गांव में भी। तो जिन्हें एक्सप्रेस वे से डायरेक्ट फायदा नहीं भी मिल रहा उन पर भी इसका असर होता है।एक्सप्रेसवे का पॉलिटिकल रूट मैपराज्यजिन लकोसभा क्षेत्रों को सीधे प्रभावित करेगीराज्य में कुल लोकसभा सीटेंदिल्ली77यूपी2- नोएडा, गाजियाबाद80हरियाणा2 -गुरुग्राम – राव इंद्रजीत सिंह (भाजपा) फरीदाबाद – कृष्णपाल गुर्जर (भाजपा)10राजस्थान8 -दौसा -अलवर-सवाई माधोपुर-टोंक-बूंदी-कोटा-झालावाड़ – बारां25मध्य प्रदेश 4- नीमच-मंदसौर-रतलाम-झाबुआ29गुजरात8 -दाहोद-गोधरा-आणंद-वडोदरा-भरूच-सूरत-नवसारी-वलसाड26महाराष्ट्र3-ठाणे – राजन विचारे (शिवसेना) – रायगढ़ – गोमती साई (भाजपा) – पालघर – राजेंद्र गावित (बालासाहेबांची शिव सेना)48केंद्रशासित2 – दमन-दीव और दादर नगर हवेली2कितने पानी में भाजपाइस लिहाज से दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेस वे का असर 2024 लोकसभा चुनाव में पड़ना तय है। अब सीधे आंकड़ों पर आते हैं कैसे। दिल्ली की सातों लोकसभा सीटों पर भाजपा का कब्जा है। और एक्सप्रेस वे को दिल्ली से जोड़ने की तैयारी तेजी से चल रही है। उत्तर प्रदेश में 80 में 62 सीटें भाजपा और उसके सहयोगी दलों को मिली। इस बार 80 में 80 का टारगेट है। हरियाणा में भी भाजपा ने 10 में 10 का स्कोर किया था। फिर राजस्थान की 25 सीटों पर भी भाजपा का क्लीन स्विप। नरेंद्र मोदी के सूबे गुजरात में भी सभी 26 सीटों पर भगवा झंडा फहराया। फिर मध्य प्रदेश की 29 में 28 सीटों पर बीजेपी ने फतह हासिल की। महाराष्ट्र में भी 48 में से 41 सीटों पर भाजपा और शिव सेना ने जीत हासिल की थी। तब शिव सेना टूटी नहीं थी। आज एकनाथ शिंदे भाजपा के साथ सीएम हैं। दोनों केंद्रशासित प्रदेशों पर भी भाजपा की जीत हुई थी। भाजपा के स्पीड का टेस्टइस लिहाज से जिन 227 लोकसभा क्षेत्रों पर एक्सप्रेसवे असर डाल सकती हैं वहां भाजपा पहले से ही चरम पर है। 227 में सिर्फ 26 सीटों पर ही 2019 में भाजपा को हार मिली। यानी 227 में 201 सीटों पर भगवा झंडा फहरा रहा है। इस प्रदर्शन को दोहराने के लिए मोदी मैजिक ही चाहिए। पब्लिक को लगे कि सरकार लगातार शानदार काम कर रही है। राजस्थान में सचिन पायलट-अशोक गहलोत के सिर फुटव्वल के बीच विधानसभा चुनाव से ही सीन क्लियर हो सकता है। ये चुनाव इसी साल है। गुजरात में बीजेपी फिर जीत तो गई लेकिन अरविंद केजरीवाल ने 13 परसेंट वोट हासिल कर डेंट दिया है। मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ कांग्रेस हमलावर है। उधर महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे घायल नाग की तरह भाजपा को डसने के लिए बेकरार हैं। चुनाव के चाणक्य प्रशांत किशोर बिहार-बंगाल-ओडिशा और दक्षिण में तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश का उदाहरण देकर बताते आए हैं कि 150 से ज्यादा सीटें ऐसी हैं जहां भाजपा पिक्चर में ही नहीं हैं। यहां 2024 में भी कुछ खास बदलाव नहीं होने वाला। और इधर यूपी-हरियाणा-दिल्ली-राजस्थान-गुजरात-महाराष्ट्र में ऐसी स्थिति नहीं है। पंजाब और राजस्थान में तो भाजपा सत्ता में भी नहीं है। ये एक्सप्रेस वे वाला इलाका ही है। पीके का एक सिनारियो दिलचस्प है। उनका कहना है कि अगर विपक्ष एकजुट होकर लड़े और एक्सप्रेस वे के रास्ते में आने वाले राज्यों में 80-100 सीटों पर भाजपा को हरा दे तो देश की राजनीतिक तस्वीर ही बदल जाएगी। ऐसे में दिल्ली से मुंबई को जोड़ने वाला एक्सप्रेस वे तुरूप का इक्का साबित हो सकता है।एक बार पूरी तरह खुल जाने के बाद हर साल 30 करोड़ लीटर फ्यूल बचेगा और 80 करोड़ किलो कार्बन डायक्साइड उत्सर्जन कम होगा। लिहाजा 120 किलोमीटर की रफ्तार से दिल्ली से जयपुर जाकर वापस आने का मजा न सिर्फ यात्रा को आनंद और रोमांच देगा बल्कि आर्थिक विकास को भी नया आयाम देने वाला साबित हो सकता है। सोहना-गुरुग्राम से लेकर जयपुर और फिर उसके बाद पचासों टाउनशिप डेवलप होंगे जिनसे लाखों रोजगार के अवसर भी पैदा हो सकते हैं।