नई दिल्ली: जब से बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भाजपा को ‘100 से कम’ पर समेटने का फॉर्म्युला सुझाया है, फाल्गुन महीने में बह रही सियासी हवा में गरमाहट आ गई है। उन्होंने कहा है कि कांग्रेस को ‘भारत जोड़ो यात्रा’ से बने माहौल का लाभ उठाते हुए ऐंटी-बीजेपी पार्टियों को एकजुट कर गठबंधन बना लेना चाहिए। अगर ऐसा हो गया तो 2024 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को 100 से भी कम सीटों पर समेटा जा सकेगा। फिर क्या था, कांग्रेस एक बार फिर चर्चा के केंद्र में आ गई। दरअसल, भाजपा को छोड़कर बाकी दलों के नेता हों, सोशल मीडिया पर एक तबका या आम लोग… दाढ़ी बढ़ाए सैकड़ों किमी पैदल चले राहुल गांधी को देख यह मान रहे हैं कि उनकी इमेज बेहतर हुई है। हालांकि इसके चुनावी फायदे की बात कोई नहीं कर रहा। कांग्रेस की फिलहाल स्थिति ऐसी नहीं है कि वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करिश्माई चेहरे को चुनौती दे सके। लेकिन नीतीश कुमार के कहने के बाद विपक्ष के केंद्र में कांग्रेस फिर आ गई है। पिछले दिनों ममता बनर्जी, के. चंद्रशेखर राव, अरविंद केजरीवाल जैसे क्षेत्रीय नेताओं की मेल-मुलाकातें होने लगी थीं तो ऐसा लगा कि ऐंटी-बीजेपी, ऐंटी-कांग्रेस मोर्चा बन सकता है। लेकिन अब शरद पवार, कश्मीरी पार्टियां, जेडीयू जैसे दल कांग्रेस के साथ दिख रहे हैं। इससे यह संभावना बन रही है कि शायद कांग्रेस की अगुआई में फिर से पुराना फॉर्म्युला आजमाया जाए। लेकिन कौन सा फॉर्म्युला 2004 वाला या 1977 वाला? विपक्षी दल शायद इस दुविधा में होंगे। 2024 से पहले कांग्रेस के अधिवेशन में मंथन24 फरवरी से कांग्रेस का तीन दिन का पूर्ण अधिवेशन रायपुर में शुरू हो रहा है। यहां अगले लोकसभा चुनाव के मद्देनजर विपक्षी एकजुटता को लेकर कांग्रेस अपना रुख साफ करेगी। पार्टी के नेता कह रहे हैं कि कांग्रेस के बगैर देश में विपक्षी एकता की कोई भी कवायद सफल नहीं हो सकती है। जयराम रमेश ने कहा कि कांग्रेस ही एकमात्र ऐसी पार्टी है जिसने BJP के साथ कहीं भी समझौता नहीं किया। यह कहकर शायद वह कुछ दलों को अलग करना चाहते होंगे जो पहले भाजपा के साथ खड़े थे। इसमें नीतीश और उद्धव भी हो सकते हैं। पिछले दो दिनों में कांग्रेस नेताओं ने साफ किया है कि चुनाव के पहले गठबंधन होना चाहिए या बाद में, इस पर अधिवेशन में चर्चा होगी। कांग्रेस के संगठन महासचिव केसी वेणुगापोल ने कहा है कि यह पूर्ण अधिवेशन 2024 के लोकसभा चुनाव की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा। आम लोग ही नहीं, कांग्रेस के भीतर भी इस सवाल का हल ढूंढा जाना बाकी है कि नीतीश कुमार के बताए रास्ते में चलना है तो कैसे? वापस उन दो फॉर्म्युले पर आते हैं। 1. 1977 में क्या थी स्थितिवह आपातकाल के बाद का दौर था। विपक्षी नेता रिहा हुए तो फौरन कांग्रेस को सबक सिखाने के लिए जनसंघ, कांग्रेस (ओ), सोशलिस्ट पार्टी, भारतीय लोकदल एक साथ आए और जनता पार्टी अस्तित्व में आई। जनता पार्टी जब जनता के बीच में गई तो उसने कहा कि वे फिर से देश में लोकतंत्र स्थापित करने के लिए एकसाथ आए हैं। आजकल कुछ ऐसी ही बातें विपक्ष कर रहा है। वह चुनाव सीधे तौर पर ‘लोकतंत्र बनाम तानाशाही’ प्रोजेक्ट कर लड़ा गया था। सिंहासन खाली करो कि जनता आती है… के नारे भी उसी समय गूंजे थे। कांग्रेस के खिलाफ एक नहीं, कई मुद्दे आगे आ खड़े हुए। कई कांग्रेसियों ने पार्टी छोड़ दी थी। असर यह हुआ कि उत्तर भारत के राज्यों में कांग्रेस 1-1 सीट ही जीत पाई। तब जनता पार्टी को 295 सीटें मिली थीं और कांग्रेस के खाते में 152 सीटें आई थीं। जनता ने कांग्रेस को सत्ता से हटा दिया और गैर-कांग्रेसी सरकार बनी। हो सकता है कि इस बार भी विपक्षी दल वैसा कुछ मोर्चा बनाना चाहें। उस समय विपक्ष के कैंडिडेट मोरार जी देसाई थे और उनके पीछे सारे दल एकजुट थे। 2024 में भाजपा के खिलाफ मोर्चेबंदी में जुटे दल भी शायद कांग्रेस को साथ लेकर ऐसा कुछ करने की सोचें लेकिन जानकार मान रहे हैं कि कांग्रेस इसके लिए तैयार नहीं होगी। 2. दूसरी स्थिति 2004 वाली हैकांग्रेस को शायद 2004 वाली स्थिति ज्यादा मुफीद लगे। उस चुनाव में भाजपा का शाइनिंग इंडिया और फीलगुड का नारा फेल हो गया था। कांग्रेस को 145 सीटें मिली थीं और उसने संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन बनाकर सरकार बनाई थी। लेफ्ट फ्रंट (59), सपा (35) और बसपा (19) के समर्थन ने मनमोहन सरकार बनवाने में अहम भूमिका निभाई। अभी रायपुर में कांग्रेस का अधिवेशन शुरू होना है लेकिन समझा जा रहा है कि कांग्रेस चाहेगी कि पार्टियां अपनी-अपनी हैसियत के हिसाब से राज्यों में लड़ें और बाद में 2004 के फॉर्म्युले की तरह गठबंधन बनाया जाए। मतलब फिलहाल कोई पीएम कैंडिडेट नहीं होगा। ये बात अलग है कि कांग्रेस समर्थक पिछले दिनों खुलकर राहुल गांधी पीएम कैंडिडेट प्रोजेक्ट करते नजर आए थे। सियासत को बारीकी से समझने वाले कहते हैं कि कांग्रेस इस तरह दोनों विकल्पों को खुला रखना चाहती है। एक तरफ कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल विपक्षी एकजुटता की जरूरत पर जोर देते हुए कहते हैं कि कांग्रेस अकेले 2024 में नरेंद्र मोदी सरकार से फाइट नहीं कर सकती है। उन्होंने कहा कि ऐंटी-बीजेपी वोट को बंटने नहीं देना है और इसके लिए विपक्षी दलों का साथ आना जरूरी है। लेकिन दूसरा विकल्प यह भी है कि कांग्रेस शायद अंदर ही अंदर चाहेगी कि 2024 में उसका प्रदर्शन अगर शानदार रहता है तो वह बाकी दलों से अच्छे से डील कर सकने की स्थिति में होगी। अडानी मुद्दे पर कांग्रेस की ‘सशक्त आवाज’ का उदाहरण दिया जा रहा है। कांग्रेस नेता ने आरोप लगाया कि इस समय देश में ‘आपातकाल जैसी’ स्थिति है। वेणुगोपाल ने कहा कि भारत जोड़ो यात्रा से पार्टी काडर जोश में है, नई ऊर्जा का संचार हुआ है। कांग्रेस पार्टी में युवाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाना भी चाहती है। 50 साल से कम उम्र के आधे लोगों के आइडिया पर कांग्रेस बढ़ रही है। उधर, भाजपा के हिसाब से सोचें तो उसे लग रहा है कि 2024 में कांग्रेस उसे चुनौती देने की स्थिति में नहीं है। उसका मानना है कि कांग्रेस अकेले चुनाव लड़ती है तो उसे कोई नुकसान नहीं होने वाला और चुनाव से पहले विपक्षी एकजुटता के उसे संकेत नहीं दिख रहे हैं। पिछले दिनों पीएम नरेंद्र मोदी ने ET के मंच से री-लॉन्चिंग वाला जो तंज कसा था वो तो आपको याद होगा ही। नहीं, तो फिर से देख लीजिए।