
ट्रेनिंग करवाने जाते थे पिता
18 साल के शेख रशीद एक सामान्य परिवार से आते हैं। उनका पैतृक शहर आंध्र प्रदेश का गुंटूर है। रशीद को यहां तक पहुंचने में उनके पिता शेख बालिशवली का अहम योगदान रहा है। अपने बेटे को मदद करने के लिए पिता की नौकरी दो बार गई। वह अपने बेटे को रोजाना स्कूटर पर बैठाकर 12 किलोमीटर लेकर जाते। वहां वह उन्हें थ्रो-डाउन करवाते। फिर वह जब उन्हें मंगलागिरी लेकर जाते, तो यह दूरी उनके घर से 40 किलोमीटर दूर था। यहां वह राज्य और जिला स्तर के कोच के साथ ट्रेनिंग करते थे।
नौकरी भी छोड़नी पड़ी
उन्हें ऑटोमोबाइल फर्म में नौकरी छोड़नी पड़ी। रोज बेटे की ट्रेनिंग की वजह से वह काम पर लेट हो जाते। रशीद के करियर को बनाने के लिए पिता के सामने आर्थिक चुनौतियां भी थीं। उन्हें अपने बेटे का करियर बनाने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ी। उन्होंने अंडर-19 वर्ल्ड कप के बाद कहा था, ‘मुझे कम-से-कम दो बार काम पर आने से मना किया गया।’ बालिशवली ने याद करते हुए बताया था कि हर गेंद करीब 400 रुपये की आती थी। और किट भी काफी महंगी थी। तो, मैंने उन्हें सिंथेटिक गेंद से प्रैक्टिस करवानी शुरू की। उस कीमत पर हमें तीन-चार सिंथेटिक गेंद मिल जाती थीं।
एमएसके प्रसाद का मिला साथ
शेख रशीद के सफर में भारतीय टीम के पूर्व मुख्य चयनकर्ता एमएसके प्रसाद का अहम योगदान रहा है। एमएसके प्रसाद ने आंध्र प्रदेश में राज्य असोसिएशन के क्रिकेट ऑपरेशंस के निदेशक पद पर रहते हुए ग्रामीण इलाकों में तीन एकेडमी तैयार करवाई थी। इसका उद्देश्य छोटे शहरों में मौजूद प्रतिभाओं को तलाशना और तराशना था। रशीद उसी ढांचे का एक चेहरा हैं, जिसका उद्देश्य कम-सुविधाएं प्राप्त प्रतिभशाली बच्चों में छुपी प्रतिभाओं को सामने लाना है।
प्रसाद ने अंडर-19 वर्ल्ड कप के बाद कहा था कि उनके पिता को काफी श्रेय जाना चाहिए। रशीद एक सामान्य परिवार से आते हैं। लेकिन उन्होंने अपने बेटे को कभी भी बड़े सपने से देखने से नहीं रोका। बलिशा जैसे लोगों के साथ सबसे अच्छी बात यह होती है कि उनका ‘खोने के लिए कुछ नहीं’ वाला रवैया होता है।’